– भारत भूमि को कर्मभूमि कहा जाता है। गीता का सार-सूत्र भी कर्मगति पर आधारित है । क्रमश: संपूर्ण ज्योतिष कर्म सिद्धांत पर अवलम्बित है। मानवीय जीवन कर्मजनित ऋणानुबन्धन का एक पड़ाव मात्र है।
– जन्मकुंडली संरचना में, आकाश अथवा भचक्र में स्तिथ भिन्न-भिन्न ग्रहो की अंशात्मक गति, स्थिति एवं युति का चित्रांकन दिया गया होता है।
- ग्रहो की भोगांशात्मक स्थिति को लेते हुए समग्र ज्योतिष सूत्रों की रचना की गयी है। प्रथमा में उक्त दोनों घटको के महत्त्व पर चर्चा की जाती है।
– भचक्र परिभाषा एवं विभाजन। जन्मकुंडली निर्माण सम्बंधित प्रक्रिया पर संक्षिप्त चर्चा। पंचांग परिचय एवं इसकी उपयोगिता ।- भचक्र परिभाषा एवं विभाजन ।
- जन्मकुंडली निर्माण सम्बंधित परिक्रिया पर संक्षिप्त चर्चा । पंचांग परिचय एवं इसकी उपयोगिता।
– कुंडली के बारह भावों के कारकत्व तथा जन्मकुंडली के भिन्न-भिन्न प्रारूप एवं उपयोगिता ।
– लग्न, निर्धारण। भिन्न-भिन्न लग्न प्रारूप तथा सुदर्शन कुंडली। षोडशवर्गीय कुंडली एवं उनका मानवीय जीवनचक्र में घटित
- होने वाली घटनाओं के साथ अन्तर्सम्बन्ध ।
– पंचतत्व एवं जन्मकुंडली निर्माण में उनकी भूमिका ।
– जन्मकुंडली का त्रयम्बकं स्वरूप- नवग्रहों की प्रकृति कारकत्व।
– दशा-अन्तर्दशा का निर्धारण एवं मानवीय जीवन के भिन्न-भिन्न पढ़ावो से इनका अन्तर्सम्बन्ध।
– गोचर ग्रहो की भावस्तिथि एवं उनका प्रभाव ।
– शेष अन्य उपयोगी विषय यथा ग्रहो का उच्चत्व-नीचत्व; ग्रहो की मार्गी एवं वक्रगति, अस्त ग्रह एवं उनका प्रभाव।
– कुंडली अध्ययन एवं विश्लेषण की प्रक्रिया में ज्योतिष सॉफ्टवेयर ”कुंडली चक्र २०१८” का महत्व एवं उपयोगिता। इसकी संपूर्ण संचालन प्रक्रिया।
– प्राकृतिक जन्मकुंडली (कालपुरुषसंरचना) तथा इसका अपनी जन्मकुंडली के साथ सक्रिय अन्तर्सम्बन्ध।
- होने वाली घटनाओं के साथ अन्तर्सम्बन्ध ।